मदर टेरेसा इन हिंदी स्टोरी । मदर टेरेसा की कहानी

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मदर टेरेसा की कहानी

मदर टेरेसा इन हिंदी स्टोरी, Mother teresa in hindi story

मदर टेरेसा इन हिंदी स्टोरी जो भारत में काफी प्रसिद्ध है और भारत में मदर टेरेसा को इसी कहानी द्वारा जाना जाता है जो आपके बच्चे के बुक में भी देखने को मिल सकता है, इस कहानी में बहुत ऐसी बातें जो हम सब को सीखना चाहिए ।

ममता की मूर्ति

बहुत साल पहले की बात है एक बार अमरीकी अधिकारी कैनेडी ने भारत में स्थित सेवा शिविरों का दौरा किया । एक शिविर में उन्होंने देखा कि एक रोगी उल्टी, दस्त और खून रने लथपथ पड़ा था ।

एक महिला पूरे मन से रोगी का सेवा और सफाई में लगी थी । यह दृश्य देख कैनेडी को आंखें खुली की खुली रह गईं । उन्होंने महिला की तरफ हाथ बढाते हुए कहा ‘ ‘ क्या मैं आपसे हाथ मिला सकता हूं ।

महिला अपने हाथों को देखकर बोलो ” ‘ ओह अभी नही, अभी ये हाथ साफ नहीं हैं। “कैनेडी बोले, ‘ ‘ नहीं-नहीँ इम्हें गंदे कहकर इनका अपमान मत कीजिए। ये बहुत पवित्र हैं ।

इन्हें तो मै अपने सिर पर रखना चाहता हूँ। ‘ ‘ यह कहते हुए कैनेडी ने उनके हाथों को अपने सिर पर रख लिया । ये पवित्र हाथ मदर टेरेसा के थे, जो सचमुच गरीब , असहाय, रोगी , अपाहिज आदि लोगों की मां थीं।

मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 युगोस्लाविया स्पोजे नगर में हुआ था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था । मदर टेरेसा का मां का नाम ड्रानाफिल तथा मदर टेरेसा का पिता नाम निकोलस था ।

बचपन से ही उनके मन में सेवा का भाव था । इसी कारण उन्होंने “नन” बनने का निश्चय किया। 1928 में वे दार्जिलिंग के लोरेटो कान्वेटै में शिक्षिका बनकर भारत आईं।

1929 इं ० मैं उन्होंने कोलकाता के सेंट मेरी हाईस्कूल मे पढ़ना शुरू किया । बाद में वे इसी विद्यालय की प्रधान शिक्षिका बन गई । गरीबों, असहायों, रोगियों को देखकर, इनका दिल सेवा के लिए मचलता रहता था ।

आखिरकार 1948 ईं० में उन्हें विद्यालय छोड़ने को अनुमति मिल गईं । अब उन्होंने अपना जीवन दुखियों, गरीबों, कुष्ठ रोगियों आदि को सेवा में लगा दिया । अब पूरी दुनिया में उनकी पहचान ‘ मदर टेरेसा ‘ के रूप में हुईं । उन्होंने नीली किनारी वाली सफेद साडी पहनना शुरू कर दिया ।

बाद में यह पहनावा सेवा भाव रखने वाले नर्सों की पहचान बन गया । नर्स की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होने अपना कार्यक्षेत्र एक बार  फिर कोलकाता गए। एक बार की बात है मदर टेरेसा एक ऐसी बुढिया को अस्पताल ले गई, जिसका शरीर चूहों और चींटों ने कुतर डाला था ।

वह अंतिम सांसे ले रही थीं । डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से मना कर दिया । मदर टेरेसा उसपे अपनी बांहों में उठाकर दूसरे अस्पताल की ओर दौरी लेकिन उस बुढिया ने उनकी बाहों में ही दम तोड दिया ।

इसके बाद मदर टेरेसा ने प्रण किया कि अब ऐसे मरणासन्न अनाथों के लिए कही घर की व्यवस्था करनी होगी । इसीलिए कोलकाता में ही उन्होंने निर्मल हृदय नामक घर की स्थापना की ।

यह घर  क्या था, एक जीर्ण-शीर्ण कमरा था , जिसमे दो पलंग रखे गए थे । जब कभी भी उन्हें कोई असहाय ,लावारिस और बीमार व्यक्ति दिखता था, वे उसे ‘ निर्मल हदय ‘ संस्थान में ले आतीं।

यहां स्नेह, सहानुभूति एवं प्यार के साथ उसकी सेवा और उपचार करतीं । कार्य एवं खेवा के विस्तार के साथ उन्हें खूब प्रसिद्धि प्राप्त हुई । वर्ष1950 ईं० में उनकी संस्था को मिशनरीज आँफ चैरिटीज़ ‘ को मान्यता मिल गई । मदर टेरेसा ने शिशु सदन, प्रेम घर और शांति नगर की भी स्थापना की ।

मदर टेरेसाअपने कार्यों को खुद करती थीं । रोगियों का मल-मूत्र या घावों का सफाई भी उन्हें खुद करती थीं । ये काम उन्हें काफी आनंद देता था । इनके कार्यों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया ।

नोबेल पुरस्कार जो दुनिया का प्रसिद्ध पुरस्कार है, वह भी उन्हें प्राप्त हूआ । सेवा , शांति , भाईचारा, परोपकार आदि की रौशनी मदर टेरेसा 5 sept 1997 को हमें छोड़कर स्वर्गवासी हो गई । आज’ मां” हमारे बीच नहीं है मगर उनकी यह उक्ति हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है

कि आपकी विश्व में जहां कही भी दुखी , रोगी , बेसहारा, असहाय आदि लोग मिलें वे आपका प्यार पाने कै हकदार हैं । उन्हें आपकी मदद चाहिए।

मदर टेरेसा की जन्म तिथि के संबंध में विवाद है तथा कईं स्रोतों यथा गूगल विकीपीडिया के आधार प पर उनकी जन्म तिथि 26 अगस्त 1910 एवं 27 अगस्त 1910 दोनों दर्शायी गई हैं ।

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