जैव प्रक्रम क्लास 10 नोट्स इन हिंदी ।
वह सारी क्रियाएं जिनके द्वारा जीवो का अनुरक्षण होता है, जैव प्रक्रम कहलाता है।
उपापचयी क्रियाओ संचालन हेतु आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति के लिए प्रत्येक जीव को जीवन पर्यंत पोषण की आवश्यकता होती है।
ऐसे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीव पर निर्भर न रहकर अपना भोजन संश्लेषित स्वयं करती है, स्वपोषी कहलाता है।
ऐसे जीव जो अपने भोजन के लिए किसी ना किसी रूप में अन्य जीव पर निर्भर रहते हैं परपोषी कहलाते हैं तथा इस प्रकार का पोषण को परपोषण कहलाता है।
मृतजीवी पोषण में जीव का मृत जीव के शरीर से अपना भोजन घुलित कार्बनिक पदार्थ के रूप में ,अपने शरीर की सतह से अवशोषित करते हैं।
परजीवी पोषण में जीव दूसरे प्राणी के संपर्क , में अस्थाई या स्थाई रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं ।
वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करता है, प्राणीसम पोषण का लाता है।
स्वपोषी पौधों सभी (हरे पौधों ) में प्रकाश संश्लेषण करने की क्षमता होती है, जिसके तहत सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधे CO2 और H2O का स्थिरीकरण कर (carbohydrate) ग्लूकोस का संश्लेषण करते हैं।
हरे पौधे में पाए जाने वाले पर्णहरित या क्लोरोफिल सौर ऊर्जा को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते है, जो संश्लेषित गुलकोस अणुओं में रहता है।
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में अनिवार्य भूमिका निभाने वाली,क्लोरोफिल को प्रकाश संश्लेषण की इकाई कहते हैं, एवं हरितलवक को प्रकाश संश्लेषी अंगक कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में जरूरी काम आने वाली चार कच्चे पदार्थ है CO2, h2o क्लोरोफिल और सूर्य प्रकाश ।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन मुक्त होता है, जो वायु को शुद्ध रखता है एवं CO2 और O2 के बीच संतुलन बनाए रखता है।
क्लोरोफिल की अनुपस्थिति के कारण सभी जंतु परपोषी होते हैं । परपोषी जंतु मृतजीवी, परजीवी या प्राणीसमपोषी होते हैं।
अमीबा तथा पैरामीशियम प्राणीसमपोषी जंतु है।
मनुष्य के आहारनाल की लंबाई करीब 8 मीटर से 10 मीटर तक की होती है तथा यह मुखगुहा, फैरिंक्स, ग्रासनली, अमाशय ,छोटी आंत और बड़ी आंत में विभाजित होती है
मनुष्य के आहारनाल के संबंध लारग्रंथि तथा यकृत अग्न्याशय नामक पाचक ग्रंथियां पाई जाती है ।
मनुष्य में छोटी आंत ड्यूओडिनम ,जेजूनम तथा इलियम में विभाजित होती है और बड़ी आंत कोलन तथा रेक्टम में विभक्त होती है।
मनुष्य में पाचन की क्रिया मुख गुहा से ही शुरू हो जाती है।
अमाशय की गैस्ट्रिक की ग्रंथियों से स्रावित होने वाली गैस्ट्रिक रस से HC1, पेप्सिनोजेन तथा गैस्ट्रिक लाइपेस होते हैं ।
ड्यूओडिनम और एलियम के ग्रंथियों से निकलने वाला रस सक्कस एंटेरीकस कहलाता है।
पचे हुए भोजन का अवशोषण इलियम के विलय के द्वारा होता है।
अवशोषण के उपरांत पचे हुए भोजन रक्त में मिलकर रक्त संचार के द्वारा विभिन्न भागों में वितरित हो जाता है ।
स्वपोषी पौधे में प्रकाश संश्लेषण करने की क्षमता होती है।
सौर ऊर्जा का परिवर्तन प्रकाश संश्लेषण में रासायनिक ऊर्जा में होता है।
वायुमंडल से पत्तियां CO2 रंध्रों द्वारा ग्रहण करती है।
वे सारी क्रियाएं जिनके द्वारा जीवो का अनुरक्षण होता है जैव प्रक्रम कहलाता है।
सूर्य के प्रकाश को क्लोरोफिल अवशोषित करता है।
मनुष्य के आहार नाल की लंबाई करीब 8 से 10 मीटर तक की होती है।
मनुष्य की अमाशय की दीवार से जठर रस नामक स्राव निकलता है।
छोटी आत की ग्रंथियां से निकलने वाली रस सक्कस एंटेरीकस या आंत्र रस कहलाता है।
जैव प्रक्रम के प्रश्न उत्तर ।
वैसे पौधे जो पोषण के लिए सड़ी गली चीजों पर आश्रित रहता हैं, वह क्या कहलाते हैं?
उत्तर मृतजीवी
स्वपोषी भोजन के लिए आवश्यक है?
उत्तर क्लोरोफिल
इनमें कौन प्रकाशसंश्लेषी का अंगक है?
उत्तर हरित लवक
वायुमंडल में CO2 का कितना प्रतिशत है?
उत्तर 0.03%
किसके द्वारा अमीबा का भोजन अंतर ग्रहण करता है?
उत्तर कूटपाद
किस छिद्र द्वारा ग्रासनी ग्रासनली से जुड़ा होता है?
उत्तर निगल द्वार
ग्रहणी भाग है?
उत्तर छोटी आंत